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#सुरक्षा_कवच सिर्फ एक व्यक्ति के पास था जिसका नाम था #कर्ण

ये बातें #द्वापर की है फिर भी युद्ध के दौरान कर्ण मारा गया और जब मारा गया उससे पहले कवच को शरीर से उतार कर दान कर दिया था।

खैर इ बात #महाभारत युग का है जहाँ राजनीति का विश्व विजेता कृष्ण हुआ करते थे।
इस #कलयुग में सुरक्षा कवच फिर आया और जिन्होंने लेकर आया उनका नाम तो सबको पता ही होगा ।

सुरक्षा कवच आने के बावजूद भी #ट्रेन_हादसा हुई जिसमें #300लोगों की #मरने की खबरें है और लगभग #1000लोग #घायल अवस्था में है।
इससे पहले #विदेशों से कुछ #चीता आये थे इनको लाने वाला कौन था और छोड़ने वाला कौन था ये भी सबको पता है।

जब छोड़ा गया उस समय चारों तरफ चीता ही चीता बोले तो पुरा टीवी चैनल्स चीतामय में लोटपोट हो चुका था।

फिर कुछ महिने बाद इन चीतो का बुरा दौर चालू हुआ
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#भीलराज गुह को देखकर राम स्वयं आगे बढ़े और "उनसे गले मिले थे"!
भरत ने #केवट को दौड़ कर गले लगाया था क्योंकि "क्षत्रिय" होने का जरा भी दंभ नहीं था, राम जी ने "शबरी के जूठे बेर" खाए थे #सत्यवती महाभारत की एक महत्वपूर्ण पात्र है, उनका विवाह "हस्तिनापुर नरेश शान्तनु से हुआ और
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#सत्यवती मल्लाह(केवट) की संतान थीं या पाला, #दासी के गर्भ से "धर्मात्मा विदुर" का जन्म हुआ था, वे राजपरिवार का हिस्सा थे, #कर्ण भी "राजा की तरह राजवंश के सदस्य" बन कर रहे.. #जातिवाद आजादी से पहले बिल्कुल नहीं था, इस बात का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों, साहित्य में आज भी मिलता
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है, #जातिवाद का जन्म, वर्गवाद #कांग्रेस_की_देन है, आजादी के समय ही #कांग्रेस ने सत्ता सुख की खातिर "मिथक" तथ्यों के सहारे #भारतीय_जनमानस को भ्रमित कर सत्ता अधिग्रहण किया, आजादी के साथ "राष्ट्र विभाजन" करवाया और "सदा सत्ता सुख की खातिर" देश के नागरिकों को #जातिवाद, #दलित
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#थ्रेड
#कर्ण
#एक_वेगळा_विचार
#जिवन
" कर्ण " महाभारतातील एक शूर राजा
सर्वोत्कृष्ट धनुर्धर , दानशूर अश्या अनेक कारणांनी आपण त्याला ओळखतो.
त्यांच्या शुरतेच्या अनेक गोष्टी आपण ऐकल्या असणार परंतु कर्ण व जीवन यांची सांगळ घालण्याचा हा प्रयत्न म्हणून कर्ण एक वेगळ्या रीतीने मांडतोय
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महाभारतात कर्ण हि व्यक्तीरेखा "असून अडचण व नसून खोळंबा" या तत्वात बसणारी आहे.मी इतरांच्या पेक्षा वेगळा आहे? मी अद्भुत आहे? आणि मी असामान्य व्यक्ती आहे? हे लहानपणापासून जाणले असतानाही त्या व्यक्तीरेखेनी स्वतःला संकुचित ठेवले
तो अजेय होता, तसेच जो पर्यंत त्याच्याकडे कवच-कुंडले आहेत
तो पर्यंत त्याला कोणीही युद्धात हरवू शकणार नाही याची जाणीव आसताना, त्याने दुर्योधनाने दिलेल्या राजपद स्वीकारण्यापेक्षा मनगटाच्या जोरावर मिळवण्याचा का प्रयत्न केला नाही? त्याने ठरवले असते तर कितीतरी राज्ये युद्धात जिंकून तो स्वामी होऊ शकला असता, तशी कधी महत्वाकांक्षा दिसली नाही
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