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Most recents (4)

एक राजकुमार बुद्ध के पास दीक्षित हुआ, श्रोण। भोगी था बहुत, फिर त्यागी हो गया बहुत। क्योंकि आदत बहुत की थी। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता था कि बहुत क्या था। बहुत भोगी था। छोड़ दिया भोग, बहुत त्यागी हो गया। कहते हैं, कभी खाली पैर जमीन पर नहीं चला था। राह से गुजरता था, तो मखमल (1/18) Image
पहले बिछाई जाती, तब वह गुजरता था। फिर दीक्षित हुआ, साधु हो गया बुद्ध का। तब भिक्षु पगडंडी पर चलते थे, तो वह कंटकित, कांटे से भरे मार्ग पर चलता था। भिक्षु देख कर चलते थे कि रास्ते पर कांटे न हों; वह देख कर चलता था कि कांटे जरूर हों। पैर उसके घावों से भर गए। भिक्षु छाया (2/18)
में बैठते, तो वह धूप में बैठता। भिक्षु एक दिन में एक बार खाते, तो वह दो दिन में एक बार खाता। बहुत!

यह मजा है। भोग मन छोड़ सकता है, त्याग पकड़ सकता है; लेकिन अति नहीं छोड़ सकता। मन अति में जीता है। मन को अति चाहिए। उसकी बड़ी सुंदर काया थी, सोने जैसा उसका शरीर था, छह महीने (3/18)
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अगर महत्वाकांक्षा न हो तब तो फिर जीवन में विकास ही नहीं होगा!

निश्चित ही, अभी जिस विकास को हम जानते हैं वह महत्वाकांक्षा के ही द्वारा होता है। लेकिन सच में क्या जीवन का विकास हुआ है? कभी यह सोचा कि विकास हुआ है? क्या विकास हुआ है? आपके पास अच्छे कपड़े हैं हजार साल पहले (1/25)
से, इसलिए विकास हो गया? या कि आपके पास बैलगाड़ियों की जगह मोटरगाड़ियां हैं, इसलिए विकास हो गया? क्या आप झोपड़ी की जगह बड़े मकान में रहते हैं सीमेंट-कांक्रीट के, इसलिए विकास हो गया?

यह विकास नहीं है। मनुष्य के हृदय में, मनुष्य की आत्मा में कौन सी ज्योति जली है जिसको हम (2/25)
विकास कहें? कौन सा आनंद स्फूर्त हुआ है जिसको हम विकास कहें? मनुष्य के भीतर क्या फलित हुआ है, कौन से फूल लगे हैं जिसको हम विकास कहें? कोई विकास नहीं दिखाई पड़ता। कोई विकास नहीं दिखाई पड़ता, एक कोल्हू का बैल चक्कर काटता रहता है अपने घेरे में, वैसे ही मनुष्य की आत्मा चक्कर (3/25)
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अवांछित लोगों को मंदिरों में प्रवेश क्यों नहीं करने देना चाहिए? ओशो ने कारण सहित विस्तार से समझाया है।

यदि आप किसी हिंदू मंदिर में गए हो तो वहां आने गर्भ-गृह का नाम सुना होगा। मंदिर के अंतरस्थ भाग को गर्भ कहते हैं। शायद आपने ध्यान न दिया हो कि उसे गर्भ क्यों कहते हैं?
(1/13)
अगर आप मंदिर की ध्वनि का उच्चार करेंगे, हरेक मंदिर की अपनी ध्वनि है, अपना मंत्र है, अपने इष्ट देवता हैं और उस इष्ट देवता से संबंधित मंत्र हैं, अगर उस ध्वनि का उच्चारण करेंगे तो पायेंगे कि उससे वहां वही ऊष्णता पैदा होती है जो मां के गर्भ में पाई जाती है। यही कारण है कि (2/13)
मंदिर के गर्भ को मां के गर्भ जैसा गोल और बंद, (करीब करीब बंद) बनाया जाता है। उसमें एक ही छोटा सा द्वार रहता है।

जब ईसाई पहली बार भारत आए और उन्होंने हिंदू मंदिरों को देखा तो उन्हें लगा कि ये मंदिर तो बहुत अस्वास्थ्यकर हैं; उनमें खिड़कियां नहीं हैं, सिर्फ एक छोटा सा (3/13)
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1.
#कड़वा_है_मगर_सच_है 🙏
सहमत या असहमत होने से पहले कृपया पूरा थ्रेड पढें😌
🔶यह कोई नई घटना नहीं है !
#महंत_नरेंद्र_गिरी बड़े पद पर थे तो पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई!
संतों की अकूत #संपदा ही उनकी बर्बादी का सबब बन गई!
👉 इस संत जगत को जो करीब से जानते हैं...
Cont....👇🏻
2.
उन्हें पता है कि #ज्ञानमार्ग के ये पथिक कितने अकेले हैं!
क्यों हैं, इसका कारण वे भी जानते हैं और समाज भी!
🔶लेकिन समाज पर #भक्ति का ऐसा आवरण चढ़ा है कि लोग विराट #आश्रमों और #मठों के भीतर बसे अंधेरे को देखना ही नहीं चाहते !
महंत गिरी सुसाइड नोट छोड़ गए हैं और काफी ...
Cont..👇🏻
3.
कुछ साफ कर गए हैं!
🔶पर सवाल हैं कि उठेंगे और उठते रहेंगे!
सच कहें तो सवालों का उठना #60के दशक में शुरू हो गया था।
यह वह #दौर था जब #ओशो जैसे अनेक संतों ने #भारत की गरीब और पीड़ित जनता को #ज्ञान बांटने के बजाय, पश्चिम की समृद्धि को ज्ञान देने के लिए चुना था...😌
Cont...👇🏻
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