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#इतिहास_के_पन्नों_से
1842 में खंडवा जिले के बड़दा गांव में जन्मे टंट्या भील (टंट्या मामा) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें भारतीय रॉबिन हुड भी कहा जाता है। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने बेहद कठोर कार्रवाई की, जिसके बाद ही टंट्या भील ने अंग्रेज़ों के खिलाफ 👇
लड़ना शुरू किया। वह उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।
विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए, अपने अदम्य साहस और जुनून के बल पर वह 12 साल तक लड़ते रहे और आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बने। वह ब्रिटिश
सरकार के सरकारी खजाने और उनके चाटुकारों की संपत्ति को लूटकर गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देते थे
टंट्या भील,गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे लेकिन एक लंबी लड़ाई के बाद,वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर जेल ले जाया गया,जहां ब्रिटिश अधिकारियों
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साल 1959 में जब युवा दलाई लामा भारत के सिक्किम पहुंचे, तब उनके आस-पास मीडिया की भीड़ लग गई। उसी भीड़ में शामिल थी एक लड़की, हाथ में एक भारी-सा कैमरा लिए, जिसके बाहरी हिस्से पर लकड़ी का कवर था और एक फ़्लैश जिसका वज़न लगभग 9 किलो था। यह कोई और नहीं, बल्कि 👇
भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट, होमी व्यारावाला थी। वह प्रेस में एकमात्र महिला थीं जिन्हें विशेष रूप से दिल्ली से इस मौके पर फोटो खींचने के लिए बुलाया गया था।
21वीं सदी में भले ही एक महिला फोटोग्राफर का होना बहुत आम लगे, लेकिन उस वक्‍त यह बड़ी बात थी। एक महिला के हाथों में
लोगों के लिए चर्चा का विषय था।
इसी को लेकर होमी ने एक इंटरव्यू में कहा- "लोग बहुत रूढ़िवादी थे। वे नहीं चाहते थे कि महिलाएं इधर-उधर घूमें और जब उन्होंने मुझे साड़ी में कैमरे के साथ घूमते हुए देखा तो उन्हें यह एक बहुत ही विचित्र लगा और शुरुआत में उन्हें लगा कि मैं कैमरे लेकर लोगों
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"मुझे आज भी याद है कि एक सैनिक ने कहा था, 'बहनजी मुझे जल्द से जल्द ठीक करो ताकि मैं देश के लिए फिर से बलिदान दे सकूं,'" यह कहना है 94 वर्षीय रमा खंडेलवाल का। 1/13
आज़ादी की लड़ाई में रमा, आज़ाद हिन्द फ़ौज का हिस्सा थीं और अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट होने का सम्मान प्राप्त किया था। एक समृद्ध परिवार से आने वाली रमा ने अपने देश के लिए सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया था। 2/13
देशभक्ति की यह भावना उन्हें अपने दादाजी और माँ से मिली, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
रमा बतातीं हैं कि फ़ौज के सभी सैनिकों को ज़मीन पर सोना होता था और वो फीका खाना खाते थे। फिर पूरा दिन ट्रेनिंग करते, वह भी बिना आराम किए। 3/13
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